उन्नति और समृद्धि त्योहारों है -
अक्षय तृतीया
हिन्दू पंचांग की मुख्य तिथियों में से एक है अक्षय तृतीया. यह हिन्दुओ के
लिए बहूत ही पवित्र दिन होता है. अक्षय तृतीया,
हिन्दू पंचांग के वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है. शुक्ल
पक्ष अर्थात अमावस्या के चंद्रमा और सूर्य एक साथ अपने उच्च कोटि के स्थान पर होते
है
अक्षय तृतीया को सबसे ज्यादा भगवान
विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।
परशुराम उन आठ पौराणिक पात्रों में से एक हैं जिन्हें अमरता का वरदान मिला हुआ है।
इसी अमरता के कारण इस तिथि को अक्षय कहते हैं, क्योंकि परशुराम अक्षय हैं। भगवान
परशुराम के जन्म के अलावा भी कुछ और पौराणिक घटनाएं हैं, जिनका अक्षय
तृतीया पर घटित होना माना जाता है।
अक्षय तृतीया का
अर्थ
हिन्दू
मान्यताएँ हैं. कुछ इसे भगवान विष्णु के जन्म से जोड़ती हैं, तो कुछ इसे भगवान कृष्ण की लीला से. सभी मान्यताएँ आस्था
से जुड़ी हैं.
1.
मान्यता के अनुसार त्रेता युग के शुरू होने पर धरती की
सबसे पावन माने जानी वाली गंगा नदी इसी दिन स्वर्ग से धरती पर आई. गंगा नदी को
भागीरथ धरती पर लाये थे. इस पवित्र नदी के धरती पर आने से इस दिन की पवित्रता और
बढ़ जाती है और इसीलिए यह दिन हिंदुओं के पावन पर्व में शामिल है. इस दिन पवित्र गंगा नदी में डुबकी
लगाने से मनुष्य के पाप नष्ट हो जाते हैं.
2.
यह दिन रसोई एवं पाक (भोजन) की देवी माँ अन्नपूर्णा का जन्मदिन भी
माना जाता है. अक्षय तृतीया के दिन माँ अन्नपूर्णा का भी पूजन किया जाता है और माँ
से भंडारे भरपूर रखने का वरदान मांगा जाता है. अन्नपूर्णा के पूजन से रसोई तथा
भोजन में स्वाद बढ़ जाता है.
3.
दक्षिण प्रांत में इस दिन की अलग ही मान्यता है. उनके
अनुसार इस दिन कुबेर ने शिवपुरम नामक जगह
पर शिव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न किया था. कुबेर की तपस्या से
प्रसन्न हो कर शिवजी ने कुबेर से वर मांगने को कहा. कुबेर ने अपना धन एवं संपत्ति
लक्ष्मीजी से पुनः प्राप्त करने का वरदान मांगा. तभी शंकरजी ने कुबेर को लक्ष्मीजी
का पूजन करने की सलाह दी. इसीलिए तब से ले कर आजतक अक्षय तृतीया पर लक्ष्मीजी का
पूजन किया जाता है. लक्ष्मी विष्णुपत्नी हैं, इसीलिए लक्ष्मीजी के पूजन
के पहले भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. दक्षिण में इस दिन लक्ष्मी यंत्रम की
पूजा की जाती है, जिसमें
विष्णु, लक्ष्मीजी
के साथ – साथ
कुबेर का भी चित्र रहता है.
4.
अक्षय तृतीया के दिन ही महर्षि वेदव्यास ने महाभारत लिखना
आरंभ की थी. इसी दिन महाभारत के युधिष्ठिर को “अक्षय पात्र” की प्राप्ति हुई थी. इस
अक्षय पात्र की विशेषता थी, कि
इसमें से कभी भोजन समाप्त नहीं होता था. इस पात्र के द्वारा युधिष्ठिर अपने राज्य
के निर्धन एवं भूखे लोगों को भोजन दे कर उनकी सहायता करते थे. इसी मान्यता के आधार
पर इस दिन किए जाने वाले दान का पुण्य भी अक्षय माना जाता है, अर्थात इस दिन मिलने वाला
पुण्य कभी खत्म नहीं होता. यह मनुष्य के भाग्य को सालों साल बढाता है.
5.
अक्षय तृतीया के पीछे हिंदुओं की एक और रोचक मान्यता है.
जब श्री कृष्ण ने धरती पर जन्म लिया, तब अक्षय तृतीया के दिन
उनके निर्धन मित्र सुदामा, कृष्ण
से मिलने पहुंचे. सुदामा के पास कृष्ण को देने के लिए सिर्फ चार चावल के दाने थे, वही सुदामा ने कृष्ण के
चरणों में अर्पित कर दिये. परंतु अपने मित्र एवं सबके हृदय की जानने वाले
अंतर्यामी भगवान सब कुछ समझ गए और उन्होने सुदामा की निर्धनता को दूर करते हुए
उसकी झोपड़ी को महल में परिवर्तित कर दिया और उसे सब सुविधाओं से सम्पन्न बना
दिया. तब से अक्षय तृतीया पर किए गए दान का महत्व बढ़ गया.
6.
भारत के उड़ीसा में अक्षय तृतीया का दिन किसानों के लिए
शुभ माना जाता है. इस दिन से ही यहाँ के किसान अपने खेत को जोतना शुरू करते हैं.
इस दिन उड़ीसा के जगन्नाथपूरी से रथयात्रा भी निकाली जाती है.
7.
अलग अलग प्रांत में इस दिन का अपना अलग ही महत्व है. बंगाल
में इस दिन गणेशजी तथा लक्ष्मीजी का पूजन कर सभी व्यापारी द्वारा अपनी लेखा जोखा
(ऑडिट बूक) की किताब शुरू करने की प्रथा है. इसे यहाँ “हलखता” कहते हैं.
8.
पंजाब में भी इस दिन का बहूत महत्व है. इस दिन को नए मौसम
के आगाज का सूचक माना जाता है. इस अक्षय तृतीया के दिन जाट परिवार का पुरुष सदस्य
ब्रह्म मुहूर्त में अपने खेत की ओर जाते हैं. उस रास्ते में जितने अधिक जानवर एवं
पक्षी मिलते हैं, उतना
ही फसल तथा बरसात के लिए शुभ शगुन माना जाता है.
अक्षय
तृतीया की कथा सुनने तथा विधि से पूजा करने से बहुत लाभ होता है. इस कथा का
पुराणों में भी महत्व है. जो भी इस कथा को सुनता है, विधिवत से पूजन एवं दान आदि करता है, उसे सभी प्रकार के सुख, संपत्ति, धन, यश, वैभव की प्राप्ति होती है. इसी धन एवं यश की प्राप्ति के
लिए वैश्य समाज के धर्मदास नामक व्यक्ति ने अक्षय तृतीया का महत्त्व जाना.
बहुत
पुरानी बात है,
धर्मदास अपने परिवार के साथ
एक छोटे से गाँव में रहता था. वह बहुत ही गरीब था. वह हमेशा अपने परिवार के भरण – पोषण के लिए चिंतित रहता था. उसके परिवार में कई सदस्य थे.
धर्मदास बहुत धार्मिक पृव्रत्ति का व्यक्ति था. एक बार उसने अक्षय तृतीया का व्रत
करने का सोचा. अक्षय तृतीया के दिन सुबह जल्दी उठकर उसने गंगा में स्नान किया. फिर
विधिपूर्वक भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना एवं आरती की. इस दिन अपने सामर्थ्यानुसार
जल से भरे घड़े,
पंखे, जौ, सत्तू, चावल, नमक, गेंहू, गुड़, घी, दही, सोना तथा वस्त्र आदि वस्तुएँ भगवान के चरणों में रख कर
ब्राह्मणों को अर्पित की. यह सब दान देख कर धर्मदास के परिवार वाले तथा उसकी पत्नी
ने उसे रोकने की कोशिश की . उन्होने कहा कि अगर धर्मदास इतना सब कुछ दान में दे
देगा, तो उसके परिवार का पालन –पोषण कैसे होगा. फिर भी धर्मदास अपने दान और पुण्य कर्म से
विचलित नहीं हुआ और उसने ब्राह्मणों को कई प्रकार का दान दिया. उसके जीवन में जब
भी अक्षय तृतीया का पावन पर्व आया, प्रत्येक
बार धर्मदास ने विधिवत इस दिन पूजा एवं दान आदि कर्म किया. बुढ़ापे का रोग, परिवार की परेशानी भी उसे, उसके व्रत से विचलित नहीं कर पायी.
इस
जन्म के पुण्य प्रभाव से धर्मदास ने अगले जन्म में राजा कुशावती के रूप में जन्म
लिया. कुशावती राजा बहुत ही प्रतापी थे. उनके राज्य में सभी प्रकार का सुख, धन, सोना, हीरे, जवाहरात, संपत्ति की किसी भी प्रकार से कमी नहीं थी. उनके राज्य में
प्रजा बहुत सुखी थी. अक्षय तृतीया के पुण्य प्रभाव से राजा को वैभव एवं यश की
प्राप्ति हुई,
लेकिन वे कभी लालच के वश
नहीं हुए एवं अपने सत्कर्म के मार्ग से विचलित नहीं हुए. उन्हें उनके अक्षय तृतीया
का पुण्य सदा मिलता रहा.
जैसे
भगवान ने धर्मदास पर अपनी कृपा की वैसे ही जो भी व्यक्ति इस अक्षय तृतीया की कथा
का महत्त्व सुनता है और विधि विधान से पूजा एवं दान आदि करता है, उसे अक्षय पुण्य एवं यश की प्राप्ति होती है.
इस
दिन भगवान विष्णु तथा लक्ष्मी की पूजा का महत्व है. इस दिन भगवान विष्णु की
पूजा-अर्चना की जाती है तथा विष्णुजी को चावल चढ़ाना विशेष लाभकारी होता
हैं.विष्णु तथा लक्ष्मीजी की आराधना कर उन्हें तुलसी के पत्तों के साथ भोजन अर्पित
किया जाता है. सभी विधि विधान पूर्णा कर भगवान की धूप-बत्ती से आरती की जाती है.
गर्मी
के मौसम में आने वाले आम तथा इमली को भगवान को चढ़ा कर पूरे वर्ष अच्छी फसल तथा
वर्षा के लिए आशीर्वाद मांगा जाता है. कई जगह इस दिन मिट्टी से बने घड़े पानी भर कर
उसमें केरी इमली तथा गुड़ को पानी में मिला कर भगवान को चढ़ाया जाता है.
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